02 फ़रवरी 2009

स्वर्ण मन्दिर

श्री हरिमन्दिर साहिब (पंजाबी:हरमन्दिर साहिब) या दरबार साहिब या स्वर्ण मन्दिर सिखों का सबसे प्रमुख गुरुद्वारा है। यह अमृतसर में स्थित है और यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है। पूरा अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा हुआ है। स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हजारों पर्यटक आते हैं। अमृतसर का नाम वास्‍तव में उस तालाब के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरू राम दास ने अपने हाथों से कराया था।
सिक्ख गुरु को भगवान के तुल्य मानते हैं। स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने से पहले वह मंदिर के सामने सर झुकाते हैं, फिर पैर धोने के बाद सी‍ढ़ि‍यों से मुख्य मंदिर तक जाते हैं। सी‍ढ़ि‍यों के साथ-साथ स्वर्ण मंदिर से जुड़ी हुई सारी घटनाएं और इसका पूरा इतिहास लिखा हुआ है। स्वर्ण मंदिर बहुत ही खूबसूरत है। इसमें रोशनी की सुन्दर व्यवस्था की गई है। सिक्खों के लिए स्वर्ण मंदिर बहुत ही महत्वपूर्ण है। सिक्खों के अलावा भी बहुत से श्रद्धालु यहां आते हैं, जिनकी स्वर्ण मंदिर और सिक्ख धर्म में अटूट आस्था है।

परिसर
श्री हरमंदिर साहिब परिसर में दो बडे़ और कई छोटे-छोटे तीर्थस्थल हैं। ये सारे तीर्थस्थल जलाशय के चारों तरफ फैले हुए हैं। इस जलाशय को अमृतसर और अमृत झील के नाम से जाना जाता है। पूरा स्वर्ण मंदिर सफेद पत्थरों से बना हुआ है और इसकी दीवारों पर सोने की पत्तियों से नक्काशी की गई है। हरमंदिर साहब में पूरे दिन गुरुबानी (गुरुवाणी)की स्वर लहरियां गुंजती रहती हैं। मंदिर परिसर में पत्थर का स्मारक लगा हुआ है। यह पत्थर जांबाज सिक्ख सैनिकों को श्रद्धाजंलि देने के लिए लगा हुआ है।

सरोवर
स्वर्ण मंदिर सरोवर के बीच में मानव निर्मित द्वीप पर बना हुआ है। पूरे मंदिर पर सोने की परत चढाई गई है। यह मंदिर एक पुल द्वारा किनारे से जुड़ा हुआ है। झील में श्रद्धालु स्नान करते हैं । यह झील मछलियों से भरी हुई है। मंदिर से 100 मी. की दूरी पर स्‍वर्ण जड़ि‍त अकाल तख्त है। इसमें एक भूमिगत तल है और पांच अन्य तल हैं। इसमें एक संग्रहालय और सभागार है। यहां पर सरबत खालसा की बैठकें होती हैं। सिक्ख पंथ से जुड़ी हर समस्या का समाधान इसी सभागार में किया जाता हैं।

द्वार
श्री हरमंदिर साहि‍ब के चार द्वार हैं। इनमें से एक द्वार गुरू रामदास सराय का है। इस सराय में अनेक हॉस्टल हैं। हॉस्टल के साथ-साथ यहां चौबीस घंटे लंगर चलता है, जिसमें कोई भी प्रसाद ग्रहण कर सकता है। श्री हरमंदिर साहब में अनेक तीर्थस्थान हैं। इनमें से जुजूबे वृक्ष को भी एक तीर्थस्थल माना जाता है। इसे बेर बाबा बुद्धा के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि जब स्वर्ण मंदिर बनाया जा रहा था तब बाबा बुद्धा इसी वृक्ष के नीचे बैठे थे और मंदिर के निर्माण कार्य पर नजर रखे हुए थे।
स्वर्ण मंदिर परिसर में स्थित सभी पवित्र स्थलों की पूजा स्वरूप भक्तगण अमृतसर के चारों तरफ बने गलियारे की परिक्रमा करते हैं। इसके बाद वे अकाल तख्त के दर्शन करते हैं। अकाल तख्त के दर्शन करने के बाद श्रद्धालु पंक्तियों में स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करते हैं।

इतिहास
स्वर्ण मंदिर को कई बार नष्ट किया जा चुका है। लेकिन भक्ति और आस्था के कारण सिक्खों ने इसे दोबारा बना दिया। जितनी बार भी यह नष्ट किया गया है और जितनी बार भी यह बनाया गया है उसकी हर घटना को मंदिर में दर्शाया गया है। अफगा़न हमलावरों ने 19 वीं शताब्दी में इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया था। तब महाराजा रणजीत सिंह ने इसे दोबारा बनवाया था और इसे सोने की परत से सजाया था।
स्वर्ण मंदिर चौबीसों घंटे खुला रहता है। दोपहर के 2 बजे से लेकर आधी रात तक यहां सबसे ज्यादा श्रद्धालु आते हैं। पूरे स्वर्ण मंदिर में फ्लड लाइट्स की व्यवस्था की गई है। सुबह और शाम के समय लाइटें बहुत सुन्दर दृश्य पेश करती हैं। स्वर्ण मंदिर शहर के पुराने क्षेत्र में स्थित है। इसके चारों तरफ गलियों का जाल बिछा हुआ है। प्रत्येक गली में अनेक गुरूद्वारे और ऐतिहासिक इमारतें हैं। इन इमारतों के साथ ही अनेक बाजार भी हैं जहां बहुत अच्छी चीजें मिलती हैं।

निकटवर्ती गुरुद्वारे
श्री हरमंदिर साहि‍ब के पास गुरूद्वारा बाबा अतल और गुरुद्वारा माता कौलन है। इन दोनों गुरुद्वारों में पैदल पहुंचा जा सकता है। इसके पास ही गुरु का महल नामक स्थान है। यह वही स्थान है जहां स्वर्ण मंदिर के निर्माण के समय गुरू रहते थे। गुरुद्वारा बाबा अतल नौ मंजिला इमारत है। यह अमृतसर शहर की सबसे ऊंची इमारत है। यह गुरुद्वारा गुरु हरगोबिंद के पुत्र की याद में बनवाया गया था। जो केवल नौ वर्ष की उम्र में मर गए थे। गुरुद्वारे की दिवारों पर अनेक चित्र बनाए गए हैं। यह चित्र गुरु नानक की जीवनी और सिक्ख संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं। इसके पास कौलन गुरुद्वारा है। यह गुरुद्वारा बाबा अतल गुरुद्वारे की अपेक्षा छोटा है। यह हरमंदिर के बिल्कुल पास वाली झील में बना हुआ है। यह गुरुद्वारा उस दुखयारी महिला को समर्पित है जिसको गुरु हरगोबिंद ने यहां रहने की अनुमति दी थी।
इसके पास ही गुरुद्वारा सारागढ़ी साहब है। यह केसर बाग में स्थित है और आकार में बहुत ही छोटा है। इस गुरुद्वारे को 1902 ई.में ब्रिटिश सरकार ने उन सिक्ख सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया था जो एंग्लो अफ्गान युद्ध में शहीद हुए थे।
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धार्मिक महत्व
पंजाब के अमृतसर शहर में स्थित गुरुद्वारे स्वर्ण मंदिर की विशेष महत्ता है। यह गुरुद्वारा एक बड़े सरोवर के बीचोबीच स्थित है। इस गुरुद्वारे का बाहरी हिस्सा सोने का बना हुआ है, इसलिए इसे गोल्डन टेंपल अथवा स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। श्री हरमंदिर साहिब को दरबार साहिब के नाम से भी ख्याति हासिल है। यूं तो यह सिखों का गुरुद्वारा है, लेकिन इसके नाम में मंदिर शब्द का जुड़ना यह स्पष्ट करता है कि हमारे देश में सभी धर्मों को एक समान माना जाता है।
इतना ही नहीं, श्री हरमंदिर साहिब की नींव भी एक मुसलमान ने ही रखी थी। इतिहास के मुताबिक सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने लाहौर के एक सूफी संत से दिसंबर, 1588 में गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी।

स्थापत्य
लगभग 400 साल पुराने इस गुरुद्वारे का नक्शा खुद अर्जुन देव ने तैयार किया था। यह गुरुद्वारा शिल्प सौंदर्य की अनूठी मिसाल है। इसकी नक्काशी और बाहरी सुंदरता देखते ही बनती है। गुरुद्वारे के चारों ओर दरवाजे हैं, जो चारों दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण) में खुलते हैं। उस समय भी समाज चार जातियों में विभाजित था और कई जातियों के लोगों को अनेक मंदिरों आदि में जाने की इजाजत नहीं थी, लेकिन इस गुरुद्वारे के यह चारों दरवाजे उन चारों जातियों को यहां आने के लिए आमंत्रित करते थे। यहां हर धर्म के अनुयायी का स्वागत किया जाता है।
गुरुद्वारे के आसपास स्थित कुछ ऐसी जगहें जो दर्शनीय हैं। गुरुद्वारे के बाहर दाईं ओर अकाल तख्त है। अकाल तख्त का निर्माण सन 1606 में किया गया था। यहां दरबार साहिब स्थित है। उस समय यहां कई अहम फैसले लिए जाते थे। संगमरमर से बनी यह इमारत देखने योग्य है। इसके पास शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समि‍ति‍ का दफ्तर है, जहां सिखों से जुड़े कई महत्वपूर्ण फैसले लिए जाते हैं।
पास में बाबा अटल नामक स्थान पर एक नौमंजिला इमारत भी है। बताते हैं कि हरगोविंद सिंह के बेटे अटल राय का जन्म इसी इमारत में हुआ था। उन्हीं की याद में इस जगह का नाम बाबा अटल रखा गया। गुरु का लंगर में गुरुद्वारे आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खाने-पीने की पूरी व्यवस्था होती है। यह लंगर श्रद्धालुओं के लिए 24 घंटे खुला रहता है। खाने-पीने की व्यवस्था गुरुद्वारे में आने वाले चढ़ावे और दूसरे फंडों से होती है।

लंगर
लंगर में खाने-पीने की व्यवस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समि‍ति‍ की ओर से नियुक्त सेवादार करते हैं। वे यहां आने वाले लोगों (संगत) की सेवा में हर तरह से योगदान देते हैं। अनुमान है कि करीब 40 हजार लोग रोज यहां लंगर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। सिर्फ भोजन ही नहीं, यहां श्री गुरु रामदास सराय में गुरुद्वारे में आने वाले लोगों के लिए ठहरने की व्यवस्था भी है। इस सराय का निर्माण सन 1784 में किया गया था। यहां 228 कमरे और 18 बडे़ हॉल हैं। यहां पर रात गुजारने के लिए गद्दे व चादर मिल जाती है। एक व्यक्ति की तीन दिन तक ठहरने की पूर्ण व्यवस्था है।
यहां दुमंजली बेरी नामक एक स्थान भी है। इसके बारे में किंवदंती है कि एक बार एक पिता ने अपनी बेटी का विवाह कोढ़ ग्रस्त व्यक्ति से कर दिया। उस लड़की को यह विश्वास था कि हर व्यक्ति के समान वह कोढ़ी व्यक्ति भी ईश्वर की दया पर जीवित है। वही उसे खाने के लिए सब कुछ देता है। एक बार वह लड़की शादी के बाद अपने पति को इसी तालाब के किनारे बैठाकर गांव में भोजन की तलाश के लिए निकल गई। तभी वहां अचानक एक कौवा आया, उसने तालाब में डुबकी लगाई और हंस बनकर बाहर निकला। ऐसा देखकर कोढ़ग्रस्त व्यक्ति बहुत हैरान हुआ। उसने भी सोचा कि अगर में भी इस तालाब में चला जाऊं, तो कोढ़ से निजात मिल जाएगी।
उसने तालाब में छलांग लगा दी और बाहर आने पर उसने देखा कि उसका कोढ़ नष्ट हो गया। यह वही सरोवर है, जिसमें आज हरमंदिर साहिब स्थित है। तब यह छोटा सा तालाब था, जिसके चारों ओर बेरी के पेड़ थे। तालाब का आकार तो अब पहले से काफी बड़ा हो गया है, तो भी उसके एक किनारे पर आज भी बेरी का पेड़ है। यह स्थान बहुत पावन माना जाता है। यहां भी श्रद्धालु माथा टेकते हैं।
परंपरा यह है कि यहां वाले श्रद्धालुजन सरोवर में स्नान करने के बाद ही गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। जहां तक इस विशाल सरोवर की साफ-सफाई की बात है, तो इसके लिए कोई विशेष दिन निश्चित नहीं है। लेकिन इसका पानी लगभग रोज ही बदला जाता है। इसके लिए वहां फिल्टरों की व्यवस्था है। इसके अलावा पांच से दस साल के अंतराल में सरोवर की पूरी तरह से सफाई की जाती है। इसी दौरान सरोवर की मरम्मत भी होती है। इस काम में एक हफ्ता या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है। यह काम यानी कारसेवा मुख्यत: सेवादार करते हैं, पर उनके अलावा आम संगत भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती है।
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भ्रमण
अमृतसर दिल्ली से 500 किलोमीटर दूर है। पुरानी दिल्ली और नई दिल्ली से अमृतसर शान-ए-पंजाब ट्रेन से पहुंचा जा सकता है। यह ट्रेन छह से सात घंटे में अमृतसर पहुंचा देती है। अमृतसर स्टेशन से रिक्शा करके गुरुद्वारे पहुंचा जा सकता है।
वैसे तो गुरुद्वारे में रोज ही श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन गर्मियों की छुट्टियों में ज्यादा भीड़ होती है। बैसाखी, लोहड़ी, गुरुनानक पर्व, शहीदी दिवस, संगरांद (संक्रांति‍) जैसे त्योहारों पर पैर रखने की जगह नहीं होती है। यहां सच्चे मन से अरदास करने से सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। इसके अलावा सुखा आसन और प्रकाशोत्सव का नजारा देखने लायक होता है।
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प्रकाशोत्सव
प्रकाशोत्सव अल सुबह ढाई बजे से आरंभ होता है, जब गुरुग्रंथ साहिब जी को उनके कक्ष से गुरुद्वारे में लाया जाता है। संगतों की टोली भजन-कीर्तन करते हुए गुरु ग्रंथ साहिब को गुरुद्वारे में लाती है। रात के समय सुखा आसन के लिए गुरु ग्रंथ को कक्ष में भी वापस भी इसी तरह लाया जाता है। कड़ाह प्रसाद (हलवा) की व्यवस्था भी 24 घंटे रहती है।
गुरुद्वारे के आसपास कई अन्य महत्वपूर्ण स्थान हैं। थारा साहिब, बैर बाबा बुड्ढा जी, गुरुद्वारा लाची बार, गुरुद्वारा शहीद बंगा बाबा दीप सिंह जैसे छोटे गुरुद्वारे स्वर्ण मंदिर के आसपास स्थित हैं। उनकी भी अपनी महत्ता है। नजदीक ही ऐतिहासिक जालियांवाला बाग है, जहां जनरल डायर की क्रूरता की निशानियां मौजूद हैं। वहां जाकर शहीदों की कुर्बानियों की याद ताजा हो जाती है।
गुरुद्वारे से कुछ ही दूरी पर भारत-पाक सीमा पर स्थित वाघा बार्डर एक अन्य महत्वपूर्ण जगह है। यहां दोनों ओर की सेनाएं अपने देश का झंडा सुबह फहराने और शाम को उतारने का आयोजन करती हैं। इस मौके पर परेड भी होती है।